Thursday, May 13, 2010

चल मन् चल..उस और.....



चल मन् चल उस और चले जहाँ होता ह्रदय प्रफुल्लित भी


अपनी मन की पीड़ा से उलझन से सन्नाटो से


दूर उसी पर्वत की गोद मे... जहाँ होता ह्रदय प्रफुल्लित भी...


sheetal जल की कल कल बहती, क्षीण कलेवर क्षिप्रा तट तर


तरु तमाल हिम्ताल टेल जहा होता ह्रदय प्रफुल्लित भी,


सन्नाटो की नीरवता ओढ़े निर्मल सा अम्बर हो


शीतल ता को ढांपे हो, और कही न इर्शाओ का


उच्चच स्वरों का आडम्बर हो


शान्ति फ़ैल सर्वत्र जहा मन शान्ति गीत ही गाता हो


दे कर सुख औरों को फिर मन आनंद मग्न समाता हो....


झूट द्वंद्व दुःख क्लेश लेश भर जहाँ न आश्रय पाta हो....


ब्रम्ह रूप मे अविरल निर्मल निर्झर बहती गंगा हो


काट ताप संताप हृदय के मन निर्मल हो चंगा हो .... चल मन चल उस और............




Wednesday, May 12, 2010

मेरे मन् के माधव.....


प्रश्न कई है जीवन के,

और हैं उन प्रश्नों के हल,

कौन जानना चाहे इनको,

एक यही बस है कौतुहल


समझ पाए मेरे शब्दों को

शब्दों की परिभाषा को

मेरे मन् की हर उलझन को,

इच्छा को अभिलाषा को


कौन समझता मेरे मन् को

सुनना चाहे कौन विचार,

कौन स्वीकारे या के नकारे

कौन करे इस पर व्यवहार?


मेरे मन् के मधुसूदन ने,

जब जब ये ही प्रश्न उठाया

अंतर मे बसते मोहन ने

तुमको हे उद्धव तब पाया

surbhit ganga ke that par....





बहता जाता दीप धार की दिशा पकड़ कर
कल कल बहती अविरल निर्झर जल धारा मे

उबड़ खाबड़ लहरों की पगडण्डी पर
नहीं खोजता मार्ग चला बस .... बहता जाता जल धारा में/

नहीं चाह मंजिल की उसको,
न परवाह जिंदगानी की,
वर्तमान का क्षण प्रदीप्त कर,
खो जाने को जल धारा में



है ऐसा ही मानव जीवन ,
कितने क्षण की थाती है
दिन और रात की लहरें प्रतिपल बस आती और जाती हैं
कौन जानता किसी मोड़ पर, किस रोड़े की ठोकर खा कर
किसी भंवर के आकर्षण में, खो जाना है जल धारा में



फिर दीप रहे न पुष्प रहे, यादों में होगा प्रदीप्त वो,
सुरभित और सुवासित होकर, मेरे मन् की जल धारा में

जहाँ की तलब है , निगाहों की प्यास है
बेदीद मुहब्बत का ये अंदाज़ ख़ास है
]इक नशा है मस्ती है
बेखुदी का आलम तारी है
मुहब्बत बड़ी या खुदा,
ये जंग जारी है
सांस बाकी हैं
दिलो जान , सब तुम्हारे है
नज़र मेरी है नज़ारे सब तुम्हारे है
शेरों की ताब हो,ग़ज़ल की रूह हो तुम
नज़र मे हो पर निगाहों से दूर हो तुम
जान मे रवां हो , दिल मे गुरूब हो तुम
कुदरत तुम्हारी है,शिद्दत तुम्हारी है
हस्ती तुम्हारी, और फुरकत तुम्हारी है
तुमसे ही गुज़र जाते है सब सेहर ओ शाम
हर सांस की जान मे तुम हो तमाम
तुम्ही को देखता हूँ, तुम्ही को जीता हूँ
तुम मुझमे समाई हो, फिर भी मैं रीता हूँ
ये तसव्वुर ये एहसास ये पेशीनगोई
बार बार यही कह जाती......
मुज तुमसे मुहब्बत है , मुहब्बत है, मुहब्बत है ..........